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सामाजिक संगठनों और राजनीतिक दलों की संवेदनाएं अखबारों में हाइलाइट होने तक ही सीमित

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सनबीम स्कूल के बहुचर्चित हत्या कांड मामले को लेकर सामाजिक संगठनों व राजनीतिक दलों की चुप्पी क्यों

अयोध्या।सर नमस्ते.. सर बिटिया के घर गए थे, फोटो आपको भेज दिया है जरा देख लेते क्या है। अरे सर वही सनबीम वाले मामले में हमारा भी दो लाइन बयान चला जाता।जब उनसे लिखकर भेजने को कहा गया तब उन्होंने कहा कि अरे भाई साहब अब आपसे अच्छा कौन लिख पायेगा आशीर्वाद दे दीजिए।
आजकल कुछ ऐसी ही काल अखबार के दफ्तरों में आ रही है। चौंकिए नहीं काल करने वाले कोई और नहीं सामाजिक मुद्दों व समस्याओं को लेकर दंभ भरने वाले तथाकथित कुछ सामाजिक संगठन के लोग हैं। नाम इनके भले अलग-अलग हों लेकिन सीरत सबकी एक सी है।
कभी खुशियों में रहते हैं,तो कभी गम में रहते हैं बस अवसर की तलाश है इन्हें ये सदा अखबार के कालम में रहते हैं। सनबीम स्कूल के बहुचर्चित कांड में कुछ सामाजिक संगठनों और सियासी दलों की संवेदना बयान – फोटो छपाने तक ही सिमटी हुई है। रविवार को ही एक संगठन के कर्ताधर्ता की काल आई, बोले फोटो भेजी है जरा तगड़ा छाप दीजिए माहौल बने अपना भी, पूछा भाईसाहब कुछ आन्दोलन, प्रदर्शन या कैंडल मार्च वगैरह निकाला है क्या। तपाक से बोले अब आप आन्दोलन करने वालों का हाल देख ही रहे हैं, दिल्ली से लेकर कहां क्या हो रहा है, बस बयान छाप देते बाकी बाद में देखेंगे।
संवाददाता भी हैरान रह गया, कुछ कहने के बजाए लम्बी सांस खिंची। यह हाल किसी एक संगठन का नहीं बल्कि शहर में उग आए कई संगठनों का है। सामाजिक सरोकारों के नाम पर हो – हल्ला महज बयान छपने छपाने तक ही सीमित है। बात इतनी ही नहीं, शुक्रवार की घटना के बाद से अब तक सड़क पर प्रदर्शन तो दूर श्रद्धांजलि सभाएं तक नहीं हुईं। सत्ता पक्ष के नेता तो मुखर नहीं हुए लेकिन विपक्षी दलों ने भी अपने दामन समेट रखे हैं।
हां इतना जरुर हो रहा है कि संगठन के कर्ताधर्ता बिटिया के घर तक जा रहे हैं और चंद मिनट बैठने के बाद मीडिया को व्हाटसअप पर फोटो भेज इतिश्री कर लेते हैं। एक कदम और बड़े तो अपनी पर्सनल और संगठन की फेसबुक वाल पर आठ – दस लाइन का आक्रोश और न्याय के लिए हुंकार पोस्ट कर, लाइक और कमेंट के इंतजार में रहते हैं। एक संगठन के मुखिया तो यहां तक कहते हैं भाईसाहब साहब सड़क पर उतरे कैसे, कुछ हो गया तो कौन साथ देगा, दुकान चलाने के लिए इतना ही काफी है।

मोहम्मद आलम

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