तीसरे अशरे में शबे कद्र की रातों को जागकर काशरत से इबादत कर अल्लाह को राजी करें : मौलाना शब्बीर नदवी
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अयोध्या। रमजान का पाक महीना चल रहा है. इस महीने में शबे कद्र, जिसे लैलतुल कद्र भी कहा जाता है, इस का अलग महत्व है. ये 5 रातें रमजान के आखिरी 10 रोजों में आती हैं,और इस्लाम में इसे सबसे पाक और महत्वपूर्ण रातों में से एक माना गया है. इस रात मुसलमान अपने गुनाहों की माफी मांगते हैं और पूरी रात इबादत में बिताते हैं. मान्यता है कि इस रात अल्लाह अपने बंदों की दुआ सुनने के लिए पहले आसमान पर आते हैं।
मौलाना शब्बीर नदवी के अनुसार, शबे कद्र की यह पाक रात रमजान के आखिरी अशरे में आती है. इस्लामी मान्यताओं के अनुसार, इसी रात जिब्राइल अलैहि सलाम के जरिए कुरान शरीफ की आयतें पैगंबर मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर नाजिल हुई थीं, इसलिए इसे शबे कद्र कहा जाता है. माना जाता है कि इस रात फरिश्ते जमीन पर उतरते हैं और रोजेदार की हर दुआ कबूल होती है. इस रात की इबादत का सवाब 1000 साल की इबादत के बराबर मिलता है।
पांच ताक रात 21, 23, 25, 27 और 29 में से कोई एक लैलतुल कद्र की रात हो सकती है. इन रातों में विशेष इबादत का महत्व बताया गया है।
मौलाना ने कहा कुरान के अनुसार, शबे कद्र की रात में कुरान की तिलावत करनी चाहिए और अल्लाह से गुनाहों की माफी मांगनी चाहिए. इस रात नफिल नमाज अदा की जाती है, और मुसलमान पूरी रात इबादत में बिताते हैं. रमजान की तमाम रातों में यह सबसे सलामती वाली रात मानी जाती है. इस रात रोजेदारों को गुनाहों से तौबा कर अल्लाह की इबादत, जिक्र, दुआ और कुरान की तिलावत में व्यस्त रहना चाहिए. साथ ही, अपने और अपने बुजुर्गों व माता-पिता के गुनाहों की माफी भी अल्लाह से मांगनी चाहिए।
लैलतुल कद्र की कुछ खास निशानियां मानी जाती हैं. इस रात न ज्यादा ठंड होती है और न ही ज्यादा गर्मी, बल्कि मौसम खुशनुमा रहता है. रहमत की बारिश होने की संभावना भी होती है. इसके अलावा, इस दिन सूरज की रोशनी तेज नहीं होती और न ही आंखों में चुभती है, बल्कि धूप भी सुकून देने वाली महसूस होती है। (मोहम्मद आलम)