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रमज़ानुल मुबारक में शबे कद्र की 27वीं रात में नाज़िल हुआ कुरआन

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अयोध्या। इस्लाम के पांच बुनियादी स्तंभों में रमजान भी एक स्तंभ है। रमजान इस्लामी कैलेंडर का 9 वां महीना है। इस बाबरकत महीने की 27वीं रात यानी शब-ए-कद्र की रात को खुदा ने कुरआन को नाजिल किया था। रमजान में तरावीह की नमाज पढ़ने,कुरआन पढ़ने,अपनी तथा अपने समाज व देश की तरक्की के लिए अल्लाह से दुआ करने, जरूरतमंद की मदद करने और हर नेक काम करने वाला महीना होता है। मौलाना मजाहिद उल इस्लाम नदवी ने बताया कि कुरआन में लिखा है ए खुदा के नेक बंदे तुम डर रखने वाले बन जाओ, ताकि तुम में परहेजगारी पैदा हो। माहे रमज़ानुल मुबारक में नेकियों का अज्र बहुत बढ़ जाता है लिहाज़ा कोशिश कर के ज्‍़यादा से ज्‍़यादा नेकियां इस माह में जमा कर लेनी चाहियें। माहे रमज़ान में एक दिन का रोज़ा रखना एक हज़ार दिन के रोज़ों से अफ़्ज़ल है और माहे रमज़ान में एक मरतबा तस्बीह़ करना इस माह के इ़लावा एक हज़ार मरतबा तस्बीह़ करने से अफ़्ज़ल है और माहे रमज़ान में एक रक्अ़त नमाज पढ़ना गै़रे रमज़ान की एक हज़ार रक्अ़तों से अफ़्ज़ल होता है। रोजा हमें अपने नफ्स पर काबू पाने को सिखाता है। हमें जरूरतमंद की मदद करना फर्ज है। रोज़ा इंसान के अंदर क़ुव्वत-ए-बर्दाश्त पैदा करता है और उसे मुश्किलात का सामना करने के लिए तैयार करता है। जब एक शख्स दिन भर भूखा और प्यासा रहकर अल्लाह की रज़ा के लिए सब्र करता है। अल्लाह अपने बंदों की दुआ कबूल करता है। रोज़ेदार सिर्फ़ एक दिन के लिए नहीं बल्कि पूरे महीने के लिए अपनी रोज़मर्रा की आदतों को बदलता है,अपने नफ़्स को क़ाबू में रखता है, और मुसलसल नेक आमाल करने की कोशिश करता है। वहीं दुआ करते हुए 24 वीं रमजान यानी मंगलवार को दुआ करते हुए कहा कि रमज़ान के सब्र और इस्तिक़ामत के असबाक़ को सीखने और अपनी ज़िंदगी में अमली तौर पर अपनाने की हर रोजेदार को तौफ़ीक़ अता फरमाए।इस मौके पर मौलाना शब्बीर नदवी, मौलाना आरिफ़ बसीर नदवी,मौलाना समीम नदवी,सहित मौजूद रहे। (मो0 आलम)

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